लेखनी कविता - रेल - बालस्वरूप राही

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रेल / बालस्वरूप राही पहले धुआं उड़ाती थी, बड़ा कोला खाती थी। अब बिजली से भागे रेल, निकली सबसे आगे रेल। लगती बिलकुल नई-नई, डिब्बे इसमें जुड़े कई, फिर भी रहती ...

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